मसअला 113. काफ़िर यानि जो ख़ुदा और उस के पैग़म्बर (स) को नही मानता है या ख़ुदा के साथ साथ किसी और को भी ख़ुदा मानता है वह एहतियात के अनुसार अपवित्र है। चाहे किसी भी आसमानी धर्म का पालन करता हो जैसे यहूदी और ईसाई।
मसअला 114. जो लोग ख़ुदा और उस के पैग़म्बर (स) पर विश्वास तो रखते हैं लेकिन कभी कभी शंका मे पड़ जाते है और उसके बारे मे खोज अध्ययन करते है तो वह पवित्र है उस शंका का कोई महत्व नही है।
मसअला 115. जो इन्सान इस्लाम धर्म की ज़रूरी चीज़ों का इन्कार करे यानि ऐसी चीज़ों का इन्कार करे जिसको सब मुस्लिम मानते हों (जैसे नमाज़, रोज़ा, महाप्रलय आदि) और वह इनके अनिवार्य होने को जानता भी हो तो वह काफ़िर है। और अगर उन के अनिवार्य होने मे शक रखता हो तो वह काफ़िर नही है। लेकिन एहतियाते मुसतहिब यह है कि उससे बचा जाए।
मसअला 116. काफ़िर के अपवित्र होने के बारे मे जो कुछ बयान किया गया उस मे उस का पूरा बदन सम्मिलित है यहा तक कि बाल और नाखुन भी।
मसअला 117. जो इन्सान इस्लामी समाज मे रहता हो और हमे उसकी आस्थों के बारे मे कुछ मालूम ना हो तो वह पवित्र है, इसके बारे मे पूछताछ करना आवश्यक नही है इसी तरह वह लोग जो ग़ैर मुस्लिम समाज मे रहते है और उन का मुसलमान या काफ़िर होने का पता ना चले तो वह पवित्र है।
मसअला 118. काफ़िर की संतान भी काफ़िर है और मुसलमान की संतान अगर सिर्फ पिता भी मुसलमान हो तो वह भी पवित्र है, लेकिन अगर सिर्फ माँ मुस्लिम हो तो एहतियात यह है कि उनसे बचा जाए।
मसअला 119. अगर कोई ख़ुदा, रसूल (स), इमाम (अ), और फातिमा ज़हरा (स) को बुरा भाला कहे तो वह काफ़िर और अपवित्र है।
मसअला 120. जो लोग हज़रत अली (अ) और दूसरे इमामों के बारे मे ग़ुलू (हद से अधिक मानना जैसे उसको ख़ुदा या रसूल आदि मानना) करते है यानि उनको ख़ुदा मानते है वह कफ़िर है।
मसअला 121. जो लोग एक वजूद को मानते है यानी वह कहते है कि इस ब्रहमान्ड में एक वजूद के सिवा कुछ नही है और वह ख़ुदा का वजूद है, या किसी दूसरे वजूद के अंदर हुलूक किए हुए है और उसके साथ है, या ख़ुदा के लिए शरीर का अक़ीदा रखते हों तो एहतियाते वाजिब के अनुसार उन सबसे बचना चाहिए।
मसअला 122. तमाम इस्लामी सम्प्रदाय पवित्र है। उन लोगों के अत्तिरिक्त जो इमामों से बैर रखते है और ख़वारिज और ग़ुलू करने वाले अपवित्र है।