जबीरा वज़ू के अहकाम345-358

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तौज़ीहुल मसाएल
वाजिब ग़ुस्ल 359 वह चीज़े जिन से वज़ू टूट जाता है।344
जिस वस्तु से घाव या किसी टूटे हुए अंग को बांधते हैं और उसके उपर दवा रखते हैं उसको जबीरा करते है।
मसअला 345. अगर वज़ू को अंगों में से किसी अंग पर घाव, फोड़ा हो या वह अंग कट गया हो और उसका उपरी भाग खुला हुआ हो और ख़ून न निकल रहा हो और पानी भी हानिकारक न हो तो सामान्य वज़ू करेगा।
मसअला 346. अगर घाव, फोड़ा या टूटना चेहरे या हाथों पर हो और उसका ऊपरी भाग खुला हो लेकिन पानी डालना उसके लिए हानिकारक हो तो उसके आस पास का भाग धो लेना काफ़ी है। परन्तु अगर गीले हाथ का उस पर फिराना हानिकारक न हो तो अपना गीला हाथ उसके ऊपर फेरे और अगर हानिकारक हो तो एक पवित्र कपड़ा रख कर उस पर गीले हाथ का फिराना मुसहतिब है।
मसअला 347. अगर घाव, फोड़ा या टूटी हुई हड्डी मसे की स्थान पर हो और उस पर मसा नही कर सकता हो तो उसपर एक कपड़ा रख कर कपड़े को ऊपर वज़ू के पानी की तरी से मसा करे और एहतियाते वाजिब के अनुसार तयम्मुम भी करे और अगर कपड़ा रखना संभव न हो तो बग़ैर मसे के वज़ू करे और एहतियाते वाजिब के अनुसार तयम्मुम भी करे।
मसअला 348. अगर घाव, फोड़ा या टूटी हुई हड्डी पर कपड़ा. चूना या इसी प्रकार की कोई और वस्तु बंधी है और उसका खोलना हानि और कष्ट का कारण नही बन रहा हो और पानी भी उसके लिए हानिकारक न हो तो उसको खोलकर वज़ू करे, और इस अवस्था के अतिरिक्त (यानि अगर उसको खोलना हानि और कष्ट का कारण हो या पानी हानिकारक हो) घाव या फोड़े या टूटी हुई हड्डी के किनारो को धो ले और एहतियाते मुसतहिब यह है कि जबीरा (वह स्थान यहा पट्टी आदि बंधी है) के ऊपर भी मसा करे और अगर जबीरा अपवित्र है या उस पर गीला हाथ नही फेरा जा सकता है तो एक पवित्र कपड़ा उसपर बांध कर गीला हाथ उसके ऊपर फिराएं।
मसअला 349. अगर पूरे चेहरे या हाथ पर जबीरा बंधा हो तो एहतियात के अनुसार वज़ू जबीरा भी करे और तयम्मुम भी करे। इसी प्रकार अगर जबीरा वज़ू के पूरे अंग पर बंधा हो तो दोनो काम करे (यानि वज़ू जबीरा और तयम्मुम)
मसअला 350. जिसकी हथेली या उंगलियों में जबीरा हो और वज़ू करते समय गीला हाथ उसपर फेर चुका हो तो सर और पैर के मसे को उसी तरी से कर सकता है और अगर वह तरी काफ़ी न हो तो वज़ू के दूसरे अंगों से तरी ले सकता है।
मसअला 351. अगर जबीरा घाव के आसपास को सामान्य से अधिक बंधा हो और उसको हटाना भी संभन न हो तो जबीरा वाले नियम का अनुसरण करे और एहतियाते मुसतहिब के अनुसार तयम्मुम भी करें। और अगर बढ़े हुए जबीरा को हटाना संभव हो तो उसको हटा दें।
मसअला 352. अगर वज़ू के अंगों पर घाव, ज़ख़्म, टूटा होने प्रभाव तो नही है लेकिन किन्ही दूसरे कारणों से उसके लिए पानी हानिकारक है तो तयम्मुम करे लेकिन अगर पानी चेहरे और हाथ के कुछ भाग के लिए की हानिकारक है तो उसके आसपास धो लेना ही काफ़ी है। मगर एहतियात यह है कि तयम्मुम भी करे।
मसअला 353. अगर वज़ू के अंग या ग़ुस्ल पर कोई ऐसी वस्तु चिपकी हुई हो जिसका उखाड़ना संभव नही है या बहुत अधिक कष्ट का कारण बनता है तो जबीरा से अहकाम का अनुसरण करे यानि उसके किनारो को धोए और उसके ऊपर हाथ फेरे।
मसअला 354. ग़ुस्ले जबीरा बिलकुल वज़ू जबीरा की तरह किया जाता है। लेकिन यहां तक संभव हो एहतियाते वाजिब के अनुसार ग़ुस्ले तरतीबी करना चाहिए।
मसअला 355. जिसके ऊपर वज़ू जबीरा या ग़ुस्ले जबीरा वाजिब हो और उसको पता है कि अंतिम समय तक भी उसका यह कारण समाप्त नही होगा तो पहले समय में ही नमाज़ पढ़ सकता है। लेकिन अगर आशा हो कि अंतिम समय तक वह कारण समाप्त हो जाएगा तो एहतियाते वाजिब यह है कि तब तक रुका रहे।
मसअला 356. अगर आँखों के दर्द के कारण चेहरे का धोना हानिकारक हो तो तयम्मुम करना चाहिए और अगर आँखों के किनारे और बाक़ी चेहरे को धो सकता है तो यह काफ़ी है।
मसअला 357.
मसअला 358. जिन नमाज़ों को जबीरा वज़ू या जबीरा ग़ुस्स से पढ़ा हो उन को दोबारा पढ़ने की आवश्यकता नही है परन्तु अगर नमाज़ का समय समाप्त होने से पहले वह कारण समाप्त हो गया हो तो एहतियाते वाजिब के अनुसार उस नमाज़ को दोबारा पढ़ना चाहिए।
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