214-212 (4) इस्तेहाला

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तौज़ीहुल मसाएल
218-215 (5) इन्क़ेलाब211-207(3) सूरज
मसअला 212. अगर अपवित्र वस्तु इस प्रकार बदल जाए कि उस को उसके पहले वाले नाम से न पुकारा जा सकता हो, बल्कि उसे कुछ और कहा जाने लगे तो वह पवित्र हो जाती है। जैसे कुत्ता नमक की कान में गिर कर नमक बन जाए तो वह पवित्र हो जाएगा और इसी को इस्तेहाला कहते हैं, इसी प्रकार जो वस्तु अपवित्र हो गई हो अगर वह बिल्कुल ही बदल जाए जैसे लकड़ी को जला कर राख कर दें या अपवित्र पानी भाप में बदल जाए तो यह सब पवित्र हो जाते हैं लेकिन केवल विशेषण बदले जैसे गेहूँ का आँटा बना लिया जाए तो वह पवित्र नही होगा।
मसअला 213. अपवित्र लकड़ी का कोएला अपवित्र है इसी प्रकार मिट्टी का कूज़ा या ईंट भी अपवित्र है।
मसअला 214. अगर अपवित्र वस्तु के बारे में शक करें कि उसका इस्तेहाला हो गया है या नही तो वह अपवित्र है।
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