43. माद्दी व मअनवी जज़ा

سایٹ دفتر حضرت آیة اللہ العظمی ناصر مکارم شیرازی

صفحه کاربران ویژه - خروج
ذخیره کریں
 
हमारे(शियों के)अक़ीदे
44. इमाम हमेशा मौजूद रहता है।42. आलमे बरज़ख
43माद्दी व मअनवी जज़ा
हमारा अक़ीदह है कि क़ियामत में मिलने वाली जज़ा में माद्दी और मानवी दोनों पहलु पाये जाते है,और वह इस लिए कि मआद भी रूहानी और जिस्मानी है। क़ुरआने करीम की आयात और इस्लामी रिवायात में भी इस का ज़िक्र हुआ है। जैसा कि जन्नत को बाग़ों के बारे में मिलता है कि उन के दरख़्तों के नीचे से नहरे जारी हैं। “जन्नातिन तजरी मिन तहतिहा अलअनहारु”[120]यानी जन्नत के बाग़ ऐसे हैं जिन के नीचे नहरे जारी हैं। या जन्नत के दरख़्तों के फ़लों व सायों के जावेदानी होने के बारे में क़ुरआने करीम फ़रमाता है कि “उकुलुहा दाइमुन व ज़िल्लुहा ”[121]यानी जन्नत के दरख़्तों के फल व साये दाइमी हैं। या साहिबाने ईमान के लिए फ़रमाया कि जन्नत में उनके लिए अच्छे हमसर होंगे। “व अज़वाजुन मुतह्हरतुन ”[122]यानी जन्नत में पाको पाकीज़ा हमसर होंगे। इसी तरह से और भी बहुत सी आयतें मौजूद है।
इसी तरह जहन्नम की जला डाल ने वाली आग और सख़्त सज़ा के बारे में भी बयान मिलता है,जो उस जहान की माद्दी सज़ा या जज़ा को रौशन करता है।
लेकिन इस से मुहिम मानवी जज़ा है,मारफ़ते अनवारे ईलाही व अल्लाह से रूह का तक़र्रुब और उसके जमालो जलाल के जलवों में पाई जाने वाली लज़्ज़त को बयान कर ने की सलाहियत किसी भी ज़बान में नही है।
क़ुरआने करीम की कुछ आयतों में जन्नत की माद्दी नेअमतों को बयान कर ने के बाद इस जुमले को इज़ाफ़ा किया गया है “व रिज़वानु मिन अल्लाहि अकबरु ,ज़ालिका हुवा अलफ़ौज़ु अलअज़ीम ”[123]यानी अल्लाह की रिज़ा और ख़ुशनूदी इन सब से बरतर है,और सब से बड़ी कामयाबी भी यही है।
हाँ इस से बढ़ कर कोई लज़्ज़त नही है कि इंसान ख़ुद यह महसूस करे कि वह अपने मअबूद व महबूब की बारगाह में क़बूल हो गया है और उस ने अपने रब की रिज़ा हासिल कर ली है।
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अली इब्नुल हुसैन अलैहिमा अस्सलाम फ़रमाते हैं कि “यक़ूलु (अल्लाह)तबारका व तआला रिज़ाया अन कुम व महब्बती लकुम ख़ैरु व आज़मु मिन मा अन्तुम फ़ीहि... ”[124] यानी अल्लाह तबारकु तआला उन से फ़रमाता है कि मेरा तुम से राज़ी होना और मेरा तुम से मुहब्बत करना इस से कहीँ बेहतर है जिन नेअमतों के दरमियान तुम ज़िन्दगी बसर कर रहे हो। ....... वह सब इन बातों को सुनते हैं और तसदीक़ करते हैं।
हक़ीकतन इस से बढ़ कर और क्या लज़्ज़त हो सकती है कि अल्लाह इंसान को इस तरह ख़िताब फ़रमाये “या अय्यतुहा अन्नफ़सु अलमुतमइन्ना इरजई इला रब्बिकि राज़ियतन मरज़ियतन फ़उदखुली फ़ी इबादि व उदख़ुली जडन्नती ”[125] यानी ऐ नफ़्से मुतमइन्ना अपने रब की तरफ़ पलट आ इस हाल में कि तू उस से राजी और वह तुझ से राजी है बस मेरे बन्दों में दाख़िल हो कर मेरी जन्नत में दाख़िल हो जा।
44. इमाम हमेशा मौजूद रहता है।42. आलमे बरज़ख
12
13
14
15
16
17
18
19
20
Lotus
Mitra
Nazanin
Titr
Tahoma