51. हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम(स.)के ज़रिये नस्ब हुए।

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हमारे(शियों के)अक़ीदे
52. हर इमाम की अपने से बाद वाले इमाम के लिए ताकीद 50.आइम्मा पैग़म्बरे इस्लाम (स.)के ज़रिये मुऐय्यन हुए है।
51हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम(स.)के ज़रिये नस्ब हुए।
हमारा अक़ीदह है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.)ने बहुत से मौक़ों पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम को (अल्लाह के हुक्म से)अपने जानशीन की शक्ल में पहचनवाया है। ख़ास तौर पर आखरी हज से लौटते वक़्त ग़दीरे ख़ुम में असहाब के अज़ीम मजमें में एक ख़ुत्बा बयान फ़रमाया जिसका मशहूर जुम्ला है कि “अय्युहा अन्नास अलस्तु औवला बिकुम मिन अनफ़ुसिकुम क़ालू बला ,क़ाला मन कुन्तु मौलाहु फ़अलीयुन मौलाहु ”[132] यानी ऐ लोगो क्या मैं तुम्हारे नफ़्सों पर तुम से ज़्यादा हक़्क़े तसर्रुफ़ नही रखता हूँ ? सबने एक जुट हो कर कहा हाँ आप हमारे नफ़्सों पर हम से ज़्यादा हक़ रखते हैं। पैग़म्बर (स.)ने फ़रमाया बस जिस जिस का मैं मौला हूँ उस उस के अली मौला हैं।
क्योँ कि हमारा मक़सद इस अक़ीदेह की दलीलें बयान करना या इस के बारे में बहस करना नही है इस लिए बस इतना कहते हैं कि न इस हदीस से सादगी के साथ गुज़रा जा सकता है और न ही यहाँ पर उस विलायत से दोस्ती व सीधी सादी मुहब्बत को मुराद लिया जा सकता है जिसको पैग़म्बरे इस्लाम (स.)ने इतने बड़े इंतज़ाम और तकीद के साथ बयान फ़रमाया हो।
क्या यह वही चीज़ नही है जिसको इब्ने असीर ने कामिल में लिखा है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.)ने इब्तदा-ए- कार में जब आयते “व अनज़िर अशीरतकल अक़रबीना ” (यानी अपने क़रीबी रिश्तेदारों को डराओ।) नाज़िल हुई तो अपने रिश्तेदारों को जमा किया और उनके सामने इस्लाम को पेश किया और इसके बाद फ़रमाया “अय्युकुम युवाज़िरुनी अला हाज़ल अम्रि अला अन यकूना अख़ी व वसीय्यी व ख़लीफ़ती फ़ी कुम ” यानी तुम में से कौन हौ जो इस काम में मेरी मदद करे ताकि वह तुम्हारे दरमियान मेरा भाई,वसी व ख़लीफ़ा बने।
किसी ने भी पैग़म्बरे इस्लाम (स.)के इस सवाल का जवाब नही दिया,बस अली (अ)ही थे जिन्होंने कहा कि “अना या नबी अल्लाह अकूनु वज़ीरुका अलैहि” यानी ऐ अल्लाह के नबी इस काम में मैं आपकी मदद करूँगा।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.)ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम की तरफ़ इशारा किया और फ़रमाया “इन्ना हज़ा अख़ी व वसिय्यी व ख़लीफ़ती फ़ा कुम ”[133] यानी यह नौ जवान (अली अ.) तुम्हारे दरमियान मेरा भाई,मेरा वसी व मेरा ख़लीफ़ा है।
क्या यह वही मतलब नही है जिस के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम अपनी उम्र के आख़री हिस्से में चाहते थे कि इसकी दूबारा ताकीद करें,और जैसा कि सही बुख़ारी में है कि आपने फ़रमाया “इतूनी अकतुबु लकुम किताबन लन तज़िल्लू बअदी अबदन”[134] यानी कलम व काग़ज़ लाओ मैं तुम्हारे लिए कुछ लिख दूँ ताकि तुम मेरे बाद हर गिज़ गुमराह न हो सको। हदीस के आख़िर में बयान हुआ है कि कुछ लोगों ने इस काम में पैग़म्बर (स.)की मुख़ालेफ़त की यहाँ तक कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.)को तौहीन आमेज़ बातें कहीँ और आप जो लिखना चाहते थे वह आपको लिखने नही दिया गया।
हम इस बात की फिर तकरार करते हैं कि हमारा मक़सद मामूली से इस्तदलाल के साथ अक़ाइद को बयान करना है। न कि इस के बारे में पूरी बहस करना वरना यह दूसरी शक्ल इख़्तियार कर लेगी।
52. हर इमाम की अपने से बाद वाले इमाम के लिए ताकीद 50.आइम्मा पैग़म्बरे इस्लाम (स.)के ज़रिये मुऐय्यन हुए है।
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